आंध्रप्रदेश मुठभेड़ में मारे गए हिड़मा और उसकी पत्नी राजे का पुवर्ती में आदिवासी परंपरा अनुसार अंतिम संस्कार
रायपुर।आंध्रप्रदेश के अल्लूरी सीतारामराजू जिले के मारेडुमिल्ली जंगल में मंगलवार को हुई मुठभेड़ में मारे गए नक्सली हिड़मा और उसकी पत्नी राजे के शव गुरुवार सुबह उनके गृहग्राम पुवर्ती लाए गए। गांव में दोनों के शवों को हिड़मा के घर ले जाकर आदिवासी परंपरा के अनुसार अंतिम संस्कार की पूरी प्रक्रिया संपन्न कराई गई। परंपरा के अनुसार, दोनों को सफेद नहीं बल्कि लाल कफन पहनाया गया, जो कि इस समुदाय की विशेष अंतिम रीति है।

अंतिम संस्कार से पहले गांव के समाजजनों ने हिड़मा और राजे को “जात में शामिल” करने की परंपरा निभाई। इस प्रक्रिया के बाद ही उन्हें सामूहिक रीति-रिवाजों के साथ अंतिम विदाई दी गई। हिड़मा और राजे को नहलाया गया, हल्दी लगाई गई और पारंपरिक रूप से सल्फी व शराब का स्पर्श करवाया गया। ग्रामीणों के अनुसार यह उनके समाज का सांस्कृतिक अनुष्ठान है, जिसके बिना अंतिम संस्कार पूर्ण नहीं माना जाता।गांव में बड़ी संख्या में ग्रामीण अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे। इनमें कई ऐसे भी थे जिन्होंने हिड़मा को कभी जीवित नहीं देखा था, परंतु सामाजिक परंपरा और जिज्ञासा के कारण वे अंतिम संस्कार में शामिल हुए।

परिजनों ने मुठभेड़ पर संदेह भी जताया। राजे के भाई ललित का कहना था कि 2010 में राजे और हिड़मा की शादी की जानकारी मिली थी और उन्हें विश्वास नहीं होता कि मुठभेड़ वास्तविक रही हो। हिड़मा के जीजा मड़कम अन्दा ने दावा किया कि आंध्रप्रदेश पुलिस ने कई नक्सलियों को पहले पकड़ लिया और बाद में मुठभेड़ दिखाकर मार दिया।

अंतिम संस्कार स्थल पुवर्ती गांव सहित आसपास के 10 किलोमीटर क्षेत्र में सुरक्षा बलों की कड़ी सुरक्षा तैनात रही। इस कारण कोई नक्सली अंतिम संस्कार में उपस्थित नहीं हो सका। हिड़मा, जो कभी बाल संघम के रूप में संगठन में शामिल हुआ था, लंबे समय से किसी भी सामाजिक परंपरा में शामिल नहीं रहा था। इसलिए अंतिम संस्कार से पहले उसे समाज में “पुनः शामिल” किया गया, जिसे समुदाय में ‘जात में शामिल करना’ कहा जाता है।



